कोलकाता : पश्चिम बंगाल की सुमना प्रमाणिक ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करते हुए स्टेट एलिजिबिलिटी टेस्ट (SET) पास कर लिया है, जिससे वह विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के योग्य हो गई हैं। उनकी यह सफलता समाज और ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक सशक्त संदेश है, जो उन रूढ़ियों को तोड़ती है जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सीमित पेशों तक ही सीमित रखती हैं।
संघर्षों से भरी रही सुमना की राह
कृष्णानगर में गरीबी में जन्मी सुमना को बचपन से ही उपेक्षा और भेदभाव का सामना करना पड़ा। मात्र छह साल की उम्र में उन्हें घर से 80 किलोमीटर दूर करीमपुर आशा शिशु आश्रम में भेज दिया गया। तमाम मुश्किलों के बावजूद, शिक्षा के प्रति उनका जुनून कभी कम नहीं हुआ। उन्होंने जगन्नाथ हाई स्कूल और कबी बिजयलाल एच.एस. इंस्टीट्यूट से स्कूली शिक्षा पूरी की, फिर श्रीकृष्ण कॉलेज (बगुला) और कल्याणी विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने बेहरामपुर यूनियन क्रिश्चियन कॉलेज से बी.एड की डिग्री हासिल की।
लगातार असफलताओं के बाद मिली सफलता
सुमना 2019 से SET परीक्षा दे रही थीं, लेकिन 2025 में आखिरकार उन्होंने सफलता हासिल की। अपनी इस उपलब्धि पर उन्होंने कहा, “मेरी सफलता यह संदेश देती है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी बुद्धिमान होते हैं और किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकते हैं। मुझे जीवनभर अस्वीकृति का सामना करना पड़ा—यहां तक कि दोस्त भी मेरे ट्यूशन क्लास के लिए छात्रों की सिफारिश करने से कतराते थे, यह सोचकर कि वे मुझे ‘सर’ कहें या ‘मैडम’। मेरी यह सफलता उन सभी अस्वीकृतियों का जवाब है।”
समाज की बेड़ियों से लड़कर आगे बढ़ी
शिक्षा के दौरान भी सुमना को भेदभाव सहना पड़ा। एक शिक्षक, जिन्होंने उन्हें नि:शुल्क पढ़ाया, बार-बार उनकी स्त्रैण भावनाओं का मजाक उड़ाते थे और उन्हें इसे दबाने की सलाह देते थे। यहां तक कि उन्हें “लड़का बनने” के लिए काउंसलिंग लेने तक की सलाह दी गई। लेकिन जब वह काउंसलिंग के लिए गईं, तो काउंसलर ने उल्टा समाज को ही काउंसलिंग की जरूरत बताई और कहा कि सुमना पूरी तरह स्वस्थ और सक्षम हैं।
कॉलेज में भी उन्हें अलग-थलग किया गया—क्लास में साथी छात्र उनके साथ बेंच साझा करने से कतराते थे, मकान मालिक उन्हें किराए पर घर देने से मना कर देते थे और छात्र उनके ट्यूशन क्लास में शामिल होने से झिझकते थे। लेकिन इन सभी बाधाओं के बावजूद, उन्होंने हार नहीं मानी और गणित शिक्षक बनने के अपने सपने को साकार करने के लिए संघर्ष करती रहीं। उन्होंने कहा, “मुझे हमेशा से गणित पसंद था, और इसका श्रेय मेरे स्कूल के एक शानदार शिक्षक को जाता है। इस परीक्षा को पास करने में मुझे पांच साल लगे, लेकिन इसने मुझे यह विश्वास दिलाया कि कठिन समय हमेशा नहीं रहता।”
समाज के लिए एक प्रेरणा
सुमना प्रमाणिक की यह सफलता सिर्फ उनकी व्यक्तिगत जीत नहीं है, बल्कि पूरे ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक प्रेरणादायक मिसाल है। उनकी यात्रा यह दर्शाती है कि शिक्षा और रोजगार में समावेशिता की कितनी आवश्यकता है। उनकी सफलता यह साबित करती है कि प्रतिभा और दृढ़ संकल्प किसी भी सामाजिक अवरोध को तोड़ सकते हैं।
