गोदान’ नही होने से निराश हो रहे पंडितजन

National West Bengal

 दलदली तट होने के चलते हो रही परेशानी

गंगासागर:  हम भले चांद पर पहुंच गये हैं, पर यह सफलता ‘गोदान’ (गाय दान) के बिना बेमानी है। सदियों पुरानी इस परंपरा का निर्वाह गंगासागर मेले में किया जाता है। जिसके लिए दूर-दूर से पंडित-पुजारियों का दल सागर पहुंचता है। इस बार भी पंडित गाय-बछ़डों के साथ भारी संख्या में तट पर मौजूद हैं।

पर मलाल इस बात का है कि गोदान कराने वाले यजमान नही हैं यह देख पंडित-पुजारी काफी निराश हो उठे है। गया के पंडित विकास तिवारी बताते हैं, ‘बिहार से गाय लेकर गंगासागर तक नहीं आ सकते, इसलिए यहीं से गाय किराया पर लिये हैं हजार रूपये में।

पिछले तीन दिनों से गोदान करवा रहे हैं लेकिन सिर्फ किराया का ही पैसा जुटा पाए हैं। आमदनी एक रूपया भी नहीं हुआ है।’ वहीं पिछले 17 वर्षों से आ रहें गुड्डू तिवारी बताते हैं, ‘ बड़ी मुश्किल से पैसा का इंतजाम करके दो हजार रुपये दो दिनों के लिए बछिया किराए पर लिया है। पर श्रद्धालुगण गोदान नहीं करा रहे हैं। वह स्नान करके तुरंत निकल जा रहे हैं। रोकने पर कहते हैं कि तट की मिट्टी कितनी दलदली है। यहां पैर रखना कठिन हो रहा है गोदान कैसे कराएं. अगली बार देखेगें?

गोदान कराने वाले सभी पंडितों का कहना है कि दो साल के बाद आस जगी थी कि कुछ कमाई होगी।लेकिन कोराना से भी बद्तर हालात है। भीड़ है पर उससे हमें कुछ भी फायदा नहीं हो रहा है। प्रशासन को हम पंड़ितों के रोजी-रोटी का भी ख्याल रखना चाहिए। पहले तो यहां आने पर दो दिनों में हमारी अच्छी-खासी कमायी हो जाया करती थी, लेकिन इस बार तो किसी तरह आने-जाने का खर्च ही उठ पाया है।

गौरतलब है कि गंगासागर में गोदान कराने मुख्य रूप से बिहार के गया, जमुई, लखीसराय, किउल और सोनपुर से पंडित आते हैं। गंगासागर पहुंचकर उन्हें मेले का पास बनवाना पड़ता है, फिर रहने-खाने का अपना इंतजाम करना पड़ता है। ज्ञात हो कि गंगासागर में कुल पांच घाट है। इन सभी घाटों की स्थिति लगभग एक तरह की ही है। सभी घाट दलदली मिट्टी से भरे हुए हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *