गंगासगार : बुजुर्गों के मोक्ष यात्रा के रूप में तीर्थ यात्रा को माना जाता है। बदलते जमाने में तीर्थ के संग पर्यटन के जुड़ने से परिदृश्य पुरी तरह से अलग हो गया है। विश्व प्रसिद्ध गंगासागर मेला इसका जीवंत उदाहरण है। मकर संक्राति स्नान के उपक्ष्य में लगने वाले इस मेले में बड़ी संख्या में बुजुर्ग और युवा भी शामिल हो रहे हैं।
अंतर सिर्फ इस बात का है कि मोक्ष की चाह में बुजुर्ग स्नान-ध्यान और पूजा-पाठ करने में रत हैं। युवा पीढ़ी पर्यटन के भाव से सागर को टटोलते हैं। श्रद्धापूर्वक युवा भी स्नान करते हैं, पर लहरों के संग अठखेलियां करते हुए, फिर पंडितों से वहां के इतिहास समझते, कर्मकांड़ों को तर्क की तराजू पर तौल-नाप करते है।
पूरी तरह से संतुष्ट होकर इस सूचना को मोबाईल पर अपलोड़ करते हैं। उत्साह से लबरेज नालंदा से सागर पहुंची युवा महिला यात्री वर्षा बिंदास होकर कहती हैं,‘यू-ट्रयूब का जमाना है, ऑनलाइन मेले को हर साल ही देखते हैं. लेकिन रियल देखने का अपना अलग ही अनुभव है. एक बात तो समझ गयी कि सच में यहां तक पहुंचने का रास्ता कठिन है।
ट्रेन, बस, फिर पानी का स्टीमर. शायद इसलिए कहा गया है, ‘सारे तीर्थ बार-बार गंगा सागर एक बार’ वहीं रूपा सहनी ने कहा कि, ’स्नान करके पूजा करना अच्छा लगा. जामताड़ा के मिथुन ने बताया कि, ‘मंदिर प्रांगण से लेकर घाट पर बने ढ़ेरों सेल्फी प्वाइंट देखकर हम चैंक गए, पर खुशी है कि प्रशासन ने हम युवाओं की पसंद का भी खास ध्यान रखा है।
गौरतलब है कि एक वक्त था जब लोग अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में सागर यात्रा की ‘शुरूआत करते थे, कुछ तो दुर्गम यात्रा के दौरान दम तोड़ देते थे, कुछ समुद्री लुटेरों का शिकार बन जाते थे। लेकिन अब जीवन की शुरूआत में ही यह यात्रा सबके लिए सहज-सुलभ हो गया है। बस जरूरत है पंरपरा व संस्कृति के संजोने वाले इस मेले को प्रदूषण मुक्त बनाने की, हालांकि प्रशासन की ओर से मेले को ‘इको फ्रेंडली और प्लास्टिक मुक्त’ बनाने के लिए जागरूकता अभियान जोर-शोर से चलाया जा रहा है।