जबतक मौत लिखी ना हो तब तक किसी की मौत नहीं आ सकती : कारगिल योद्धा

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  • वीर चक्र विजेता कारगिल योद्धा ने बाल सुधार गृह रांची के बच्चों से की प्रेरणादायी मुलाकात
  • कहा- जीवन बेखौफ होकर जीएं और क्षण-क्षण को देश के लिए समर्पित करें

रांची/कोलकाता : बाल सुधार गृह डुमरदगा, रांची में रविवार को सैप-2 बटालियन (झारखंड पुलिस) के कमांडेंट कर्नल जेके सिंह के नेतृत्व में बच्चों के लिए एक प्रेरणात्मक कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें कारगिल योद्धा आनरेरी कैप्टन शत्रुघन सिंह, वीर चक्र विजेता ने उपस्थित होकर बाल सुधार गृह, रांची के बच्चों से मुलाकात की। इस दौरान जांबाज शत्रुघन सिंह ने कारगिल युद्ध में अपनी और भारतीय सैनिकों की वीरता के अनछुए किस्से बच्चों को सुनाए, जिसपर जमकर तालियां बजीं।

करीब दो घंटे की इस मुलाकात में बच्चों ने उनसे कई सवाल- जवाब भी किए। बच्चों को संबोधित करते हुए उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि जबतक मौत लिखी ना हो तब तक किसी की भी मौत नहीं आ सकती है। इसलिए जीवन बेखौफ होकर जीएं और अपने जीवन के क्षण-क्षण को देश के लिए पूर्णतया: समर्पित करें। महिला बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग, झारखंड सरकार, किशोर न्याय बोर्ड, रांची एवं सैप-2 वाहिनी के विशेष सहयोग से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था।

प्वाईंट 4268 की चोटी पर विजय हासिल करने में निभाई थी अहम भूमिका

बता दें कि उस समय सेना में लांस नायक और अब आनरेरी कैप्टन शत्रुघन सिंह ने 1999 में कारगिल की लड़ाई में प्वाईंट 4268 की चोटी पर विजय हासिल करने में अहम भूमिका निभाई थी। उन्हें लड़ाई के दौरान एक गोली कमर में और एक गोली दाहिने पैर में लगी थी। दोनो गोली शरीर में होने के बावजूद उन्होंने आमने- सामने की लाड़ाई में दो पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया था।

वहीं, युद्ध में शत्रुघन सिंह के मृत होने की खबर भी उनके परिवार को दे दी गई थी और उनका दाह संस्कार और श्राद्ध क्रिया कर्म भी पूरी की जा रही थी। 10-11 दिन के बाद उनके जीवित होने की खबर उनकी पत्नी को दी गई। बिना खाना खाये और बिना एक बूंद पानी पिये भी जांबाज शत्रुघन सिंह 11 दिनों तक पहाड़ों में घिसटते रहे और दो पाकिस्तानी सैनिकों को भी इसी हालत में रहते हुए इन्होंने मार गिराया था। बुरी तरह घायल अवस्था में किसी तरह घिसटते- घिसटते अपने कैंप में वापस पहुंचे थे जहां उन्हें दूर से दुश्मन समझ कर चैलेंज किया गया। हाथ उठाकर उन्होंने इशारा किया और तब भारतीय सेना के सैनिकों ने इन्हें पहचाना कि दाढ़ी और लंबे बाल वाला वह आदमी जिसके शरीर में घाव में और गोली लगने वाले हिस्से में कीड़े पड़ चुके थे वह भारतीय सैनिक अपना ही वीर शत्रुघन था।

उनके मरने की खबर के बाद उन्हें सिक्किम और बिहार सरकार के द्वारा दस- दस लाख का चेक भी उनके परिवार को दे दिया गया था। कारगिल युद्ध में बुरी तरह से घायल होने के चलते बाद में उन्हें यह भी मौका दिया गया था कि वे एक पेट्रोल पंप और अन्य कई राशि लेकर शांति से एक सामान्य नागरिक की तरह अपने बाकी जीवन को बिताएं, परन्तु उन्होंने सारी दौलत को ठुकरा कर सेना में ही वापस कार्य करते रहकर मातृभूमि की की सेवा करने का निश्चय किया और इस बावत अधिकारियों से अनुरोध किया। इनके अदम्य साहस और जज्बे को देखते हुए मिसाल के तौर पर उन्हें आगे भी भारतीय सेना में काम करने का अवसर मिला।

बच्चों द्वारा कारगिल योद्धा से पूछे गए प्रश्नोत्तर

गोली लगने के बाद सबसे पहले आपको किसकी याद आ रही थी। उत्तर- सबसे पहले ईश्वर की याद आ रही थी और अपने ट्रेनिंग की, जिससे आगे की कार्रवाई क्या करना है इस पर विचार कर रहा था। साथ ही यह संतुष्टि हो रही थी कि मैंने देश के लिए कुछ विशेष काम किया है। इधर, सैप-2 वाहिनी के कमांडेंट कर्नल जेके सिंह ने बताया कि हम आगे भी ऐसे प्रेरणात्मक कार्यक्रम करते रहेंगे, जिससे समाज और बाल सुधार गृह में रह रहे बच्चों की सोच में सकारात्मक बदलाव आए और वे आगे चलकर देश के सम्मानित नागरिक बन सकें।

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