लिटरेरिया 2022 का दूसरा दिन

Kolkata

कोलकाता, साहित्योत्सव लिटरेरिया का दूसरा दिन संवाद, कविता, कहानी, नाटक इत्यादि की विभिन्न प्रस्तुतियों के साथ संपन्न हुआ। इस दिन की शुरुआत युवा संवाद सत्र के साथ हुई, जिसका विषय था ‘हिंदी में हम‘ और इस सत्र के प्रमुख युवा वक्ताओं में प्रियंका परमार, अनूप यादव, आकांक्षा मिश्रा, तान्या चतुर्वेदी व विवेक कुमार साव शामिल थे।

इस सत्र में उदय प्रकाश की कविता विरजित खान को केंद्र में रख कर परिचर्चा आयोजित की गई थी. युवा संवाद सत्र का संचालन दिनेश राय ने किया। इसके बाद आयोजित कहानी पाठ (दास्तानगोई) में भारती दीक्षित द्वारा ‘मांडू में प्रेम‘ का पाठ किया गया। सत्र का संचालन सुधा तिवारी ने किया।

इस दिन आयोजित संवाद सत्र ‘परंपरा और इतिहास बोध’ के अंतर्गत युवा आलोचक अंजनी श्रीवास्तव ने कहा कि हर जाति में स्मृति संरक्षण की पद्धति होती है। इतिहास तथ्य पर बल देता है। कथाकार किरण सिंह ने कहा कि स्त्रियाँ नहीं गढ़ी जाती, उनका तो इस्तेमाल होता है। गढ़े तो देवता जाते हैं। हमारा भारतीय स्त्री विमर्श सिमोन द बोउआर को जितना याद करता है, उससे अधिक रमा बाई और सावित्री बाई को याद करना चाहिए।

सुपरिचित लेखक अशोक कुमार पांडेय ने कहा कि हम इतिहास में कहानियों की और कहानियों में इतिहास की तलाश करते हैं, इसलिए इतिहास बोध नहीं बन पाता है। सुपरिचित आलोचक वेदरमण ने कहा कि परम्परा और इतिहास का बोध मनुष्य से संबंध रखता है। इस सत्र का संचालन युवा आलोचक आशीष मिश्र ने किया। इस दिन के मुख्य आकर्षणों में से एक था देश के विभिन्न हिस्सों से आए कवियों का कविता पाठ।

कविता के इस सत्र के कवियों में शामिल थे सौमित्र मोहन, विनोद पदरज, शाश्वती सान्याल (बांग्ला), सुजाता, राही डूमरचीर तथा पूनम सोनछात्रा। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि सौमित्र मोहन ने अपने दीर्घ साहित्यिक जीवन के विभिन्न अनुभवों को साझा किया। इस सत्र का संचालन चयनिका ने किया।

दिन के अंत में ऋतेश कुमार द्वारा निर्देशित नाटक ‘तीन तिलंगे‘ की प्रस्तुति की गई। इसके प्रमुख कलाकारों में पूनम सिंह, दीपक ठाकुर, विशाल पांडेय, हंस राज, अभिषेक पांडेय, ट्विंकल रक्षिता, निखिल विनय, विकास सिंह और अमित मिश्रा शामिल थे। सत्र का संचालन इतु सिंह ने किया।

इस दिन का धन्यवाद ज्ञापन अनिला राखेचा द्वारा किया गया। अपने ज्ञान परम्परा से दूर हो गये हैं। परम्परा को लेकर ही कोई देश गतिशील होने के साथ प्रगतिशील भी होता है। परम्परा के अभाव में देश गतिशील हो सकता है, प्रगतिशील नहीं हो सकता।

युवा आलोचक आशीष मिश्र ने कहा कि परम्परा कोई एक नहीं होती परम्पराएं होती है। किसी भी परम्परा के अनेक मुख होते है, एक बिन्दु नहीं होता। जब किसी एक बीज मुख को खोजने की कोशिश की जाती है, तो विडम्बना हो जाती है। युवा आलोचक योगेश तिवारी ने कहा कि हमारा आग्रह परम्परा पर नहीं बल्कि खोज पर है। खोज मात्र दृष्टि होती है लेकिन यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके बिना खोज संभव नहीं है। नीलांबर द्वारा इस विषय पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त पूजा साव ने विषय पर बोलते हुए कहा कि परम्परा को बदल देना अपने आप में परम्परा है। परम्परा में आधुनिकता की संभावना होती है।

आलोचना सत्र का संचालन विनय मिश्र ने किया। दिन के अंत में नीलांबर द्वारा निर्मित एवं ऋतेश पांडेय के निर्देशन में बनी फिल्म “लौट रही है बेला एक्का” का प्रदर्शन किया गया। जिसे दर्शकों द्वारा भरपूर सराहना मिली।  इस फिल्म के मुख्य कलाकारों में शामिल हैं ट्विंकल रक्षिता, दीपक महीश, विशाल पांडेय, आशा पांडेय, दीपक ठाकुर, हंसराज। फिल्म प्रदर्शन के बाद फिल्म के कलाकारों का अभिनंदन किया गया। इस सत्र का संचालन शैलेश गुप्ता ने किया। पूरे दिन के लिए धन्यवाद ज्ञापन निर्मला तोदी ने किया। इस अवसर पर बहुत संख्या में अध्यापक, लेखक, विद्यार्थी एवं साहित्यप्रेमी उपस्थित रहें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *