कोलकाता, सीमा गुप्ता
बड़ी बेसब्री से करती हूं
अब आपका इंतजार।
झांक-झांक कर निहारती,
हर पल आपकी राह।।
कभी साथ कटते थे हमारे,
कितनी सुहानी शाम ।
कभी सोफे तो कभी बिस्तर पर ,
होती थी मुलाकात ।।
जंहा भी जाते साथ जाती थी,
अकेलेपन का ना होने दिया एहसास ।
कभी हंसाती कभी रुलाती
कभी कोई गीत मैं सुनाती
कभी जीवन की गाथा कह जाती
कभी भविष्य की बात बताती
कभी प्रेम की बाते करती
कभी बिरह की कथा सुनाती
हर पल अपना रंगीन बनाती
कभी बाहों में सिमट कर
आपके संग रात बिताती।
तो कभी मेज से ही आपको
यूं ही सारी रात निहारती।।
अब वो साथ नही आते
मुझे उठाने के खातीर
अब वो हाथ नही आते
अब महीनो मेरी आपसे
मुलाकात नही होती
लैपटॉप में ही आपकी
सारी शाम गुजर जाती
बोलो सखी कौन हुं मैं ?
नाम भी क्या भूल गई ?
उठकर देखो तुम्हारे ड्राइंग रूम के कोने में सजी हु मैं
।। मैं हूं किताब तुम्हारी।।
।।में हूं किताब तुम्हारी ।।