कोलकाता : वर्तमान ट्रस्टियों के चंगुल से ओशो की समाधि और बौद्धिक संपदा को बचाया जाएं। ताकी जनहित में प्रेम और ध्यान की ओशो देशना को मजबुत किया जा सके। कानूनी रूप से वर्तमान में ओशो संन्यासियों का पुख्ता प्रमाण इस बात को बल देता है कि ट्रस्टियों ने अवैध रुप से कब्जा जमाए रखा। यह बातें कोलकाता प्रेस क्लब में एक प्रेस वार्ता के माध्यम से स्वामी चैतन्य कीर्ति एंव अनके दल प्रमुख जय संगितम, मां अनीता, मां मधुरिमा, मां कंचन ने कहीं। उन्होंने आरोप लगाया कि पुणे में ओशो का एक विश्वस्तरीय भारत का मुख्य ध्यान केंद्र है। कोरेगाँव पार्क में यह स्थान हमेशा से श्री रजनीश आश्रम के नाम से प्रसिद्ध रहा है, लेकिन गत 20 वर्षों से इस स्थान को ओशो इंटरनेशनल मैडिटेशन रिसोर्ट के नाम से जाना जाता है। अतीत में यहाँ लगभग 100 देशों के लोग हज़ारों की संख्या में आते रहे हैं। इस केंद्र का संचालन भारतीय ट्रस्टी करते हैं, उनकी संस्था का नाम है “ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन” लेकिन ये ट्रस्टी दिखावे मात्र के हैं क्योंकि उनका ट्रस्ट भारत में रजिस्टर्ड है।
आरोप यह भी लगा है कि इसी नाम का एक दूसरा ट्रस्ट करीब 25 वर्ष पहले जूरिख में रजिस्टर्ड किया गया, जूरिख में इस ट्रस्ट के 4 सदस्य विदेशी हैं, एक भारतीय है जिसका अमेरिकन पासपोर्ट है और इन पांच सदस्यों ने मिलकर जूरिख में रजिस्टर्ड अपने ट्रस्ट को ओशो का मुख्यालय घोषित करके ओशो की समूची बौद्धिक सम्पदा पर एकाधिकार कर लिया और भारत में स्थित ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन को अपने अधीन कर लिया है। यह सब पिछले 25 वर्ष से हो रहा है। ओशो की 650 पुस्तकों की 60 -70 भाषाओँ में अनुवादित पुस्तकों की बिक्री का धन विदेश में इन ट्रस्टियों की निजी कंपनियों में रख लिया जाता है।भारत में ओशो का आश्रम इससे वंचित रह जाता है। आश्रम की जानबूझ कर उपेक्षा की गयी है।
इसलिए एक बात प्रचारित की गयी कि चूँकि अब बहुत लोग आश्रम नहीं आते, आश्रम घाटे में चल पा रहा है, इसलिए इसके एक हिस्से को बेचना ज़रूरी हो गया है। बजाज ग्रुप के मालिक राजीव नयन बजाज से सौदा कर लिया गया 107 करोड़ रुपये का इतना ही नहीं, इस सौदे की राशि में से 50 करोड़ रुपये की अग्रिम राशि भी ले ली गयी। भारत में रहने वाले ओशो शिष्यों के दिल को इस बात से बहुत चोट लगी है कि उनके गुरु के आश्रम के एक हिस्से को बेचा जा रहा है। आरोप यह भी है कि ओशो आश्रम में जहाँ ओशो की समाधि है, उनके सम्बुद्ध शिष्यों की भी पांच समाधियां हैं, उनके रखरखाव में उपेक्षा बरती जा रही है, पांच समाधियों पर काला कपड़ा बिछा रहता है और ओशो की समाधि पर जाने के लिए प्रतिदिन का शुल्क 970 रुपया वसूला जाता है। भारत में कंहीं भी ऐसा नहीं होता कि जहाँ गुरु की समाधि के दर्शन करने के लिए अथवा वहां मौन ध्यान में आधा घंटा बैठने के लिए इतना शुल्क देना पड़े।