PM उद्घाटन करें और मैं ताली बजाऊं ऐसा नहीं हो सकता: शंकराचार्य

Kolkata National

निश्चलानंद सरस्वती ने फिर दोहराया- राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाऊंगा

कोलकाता : पुरी गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि वह 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि मैं शंकराचार्य के पद की गरिमा को जानता हूं, पीएम उद्घघाटन करेंगे, राम लला की मूर्ति को स्पर्श करेंगे और मैं ताली बजाऊं, ऐसा नहीं हो सकता।

ताली बजाना शंकराचार्य पद के अनुरूप नहीं है। गंगासागर जाने के लिए कोलकाता आगमन पर बड़ाबाजार के सत्संग भवन में गुरुवार शाम पत्रकारों व श्रद्धालुओं के साथ बातचीत में शंकराचार्य ने यह भी कहा कि राम मंदिर पर राजनीति हो रही है। उद्घाटन समारोह को राजनीतिक रूप दिया गया है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा शास्त्र संगत होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि मैं उद्घाटन समारोह का विरोध भी नहीं करूंगा, लेकिन जाऊंगा भी नहीं। शंकराचार्य ने कहा कि मुझे एक व्यक्ति के साथ समारोह में जाने का आमंत्रण मिला है। सनातन धर्म के अनुसार कार्यक्रम होता तो मैं जाता।
उन्होंने स्पष्ट किया कि मुझे रामजी और सीताजी से परहेज नहीं है। मैं हमेशा अयोध्या जाकर भगवान राम का दर्शन किया है। भविष्य में भी दर्शन करूंगा। पर 22 जनवरी को अयोध्या नहीं जाऊंगा

शंकराचार्य ने कहा कि वैदिक बाह्मण ही वास्तव में मंदिर का पुजारी होना चाहिए। वैदिक बाह्मण मूर्तियों के लिए सुचालक होते हैं, जैसे विद्युत के लिए तांबा। मूर्तियों से खिलवाड़ घातक सिद्ध होता है। उन्होंने आगे कहा कि मठ-मंदिर हमारे आस्था के केंद्र हैं। इसका उपयोग जनहित में होना चाहिए। सनातन धर्म सदा विश्व को दृष्टि देता रहा है, रहेगा।

विश्व का हृदय भारत है। भगवान का अवतार इसी दिव्य भूमि पर होता रहा है। सत्संग भवन में शंकराचार्य को सुनने के लिए बड़ी संख्या में जुटे श्रद्धालु भक्तों का मार्गदर्शन करते हुए उन्होंने कहा कि मठ व मंदिर भारतीय वैदिक वांग्मय, सनातन धर्म, हिंदू संस्कृति की आधारशिला व दुर्ग है।

हिंदू राष्ट्र बनाने का दोहराया संकल्प

उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में राजनेताओं को परखना कठिन है। इसी के साथ उन्होंने अपना संकल्प दोहराया कि हम भारत को भव्य बनाएंगे, ङ्क्षहदू राष्ट्र बनाएंगे। शंकराचार्य ने कहा राजनेताओं की सहभागिता से वेतनभोगी, नौकरशाह के संरक्षण में सेवा के नाम पर धर्मान्तरण का दुष्चक्र चल रहा है। हमारे पूर्वज सनातनी, आर्य, हिंदू थे। शंकराचार्य ने शिक्षा, परिवेश, भोजन एवं सनातन हिंदू धर्म के सिद्धांत के अनुरूप धार्मिक निष्ठा के साथ जीवनयापन करते हुए नैतिक कर्तव्य का पालन करने की प्रेरणा दी।

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